प्रेम स्वार्थ है !
लेखक : विजय बतरा Karmalogist
प्रेम शब्द में स्वयं के लिए शक्ति और दूसरे के लिए चिंता है, यह उदासी और तनाव में दवा का काम करता है और सभी प्रकार की समस्याओं और दुविधाओं को भूलने में भी अति लाभकारी है | प्रेम में व्यक्ति को मानसिक सुरक्षा का आभास होता है, ऐसा व्यक्ति मृत है जिसका जीवन प्रेमहीन है क्योंकि प्रेम ही जीवन है | प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी से प्रेम अवश्य करता है और साथ साथ यह भी चाहता है कि उसे कोई निस्वार्थ सच्चा प्रेम करने वाला मिले | हम सभी जानते है कि प्रेम किसी से भी और कहीं भी हो सकता है, जो निस्वार्थ हो, जात-पात, आयु, नियम के अधीन ना हो वही सच्चा प्रेम है | प्रेम को अन्धा और नासमझ कहा जाता है जबकि धर्म में प्रेम का बड़ा महत्त्व है | हम सभी प्रेम के अनेकों रूप देखते है जैसे मातापिता-संतान, गुरु-शिष्य, भाई-बहन, पति-पत्नी, मित्र-संबंधी इत्यादि |
हम सभी यह भी जानते है कि संसार में बिना स्वार्थ कुछ भी नहीं होता तो प्रेम निस्वार्थ या बिना शर्त कैसे हो सकता है ? ऐसा क्यों होता है कि इतने प्रकार के प्रेम पाकर भी व्यक्ति असंतुष्ट है ? क्या इसका कारण यह है कि जितना और जैसा प्रेम व्यक्ति चाहता है वह उसे नहीं मिलता और जैसा उसे मिलता है वैसे प्रेम की उसको इच्छा ही नहीं है ? सच्चा प्रेम करने वाले की पहचान क्या है ? सांसारिक और अध्यात्मिक प्रेम में क्या भिन्नता है ? सभी संबंधों में स्वार्थ है प्रेम नहीं ? प्रेम स्वार्थ है और स्वार्थ ही प्रेम है ? ईश्वर के प्रेम में भी स्वार्थ है ? प्रेम के बारे में ऐसे अनेकों प्रश्न सभी के मन में आते है जिनका सही उत्तर सभी जानना चाहते है |
प्रेम क्या है ?
प्रेम शब्द में आशा है, आवश्यकता है और साथ ही विवशता भी है | जहाँ आशा होती है वही प्रेम होता है बिना आशा व्यक्ति प्रेम नहीं करता | व्यक्ति जिनसे भी प्रेम करता है उनसे बहुत अधिक आशा रहती है कि उसे अन्य लोगो से अधिक समय और सम्मान मिले, उसका प्रेमी अति निष्ठावान (वफादार) हो, हालांकि व्यक्ति को जितने लोगों से प्रेम मिल रहा है उसके अतिरिक्त एक और से प्रेम की चाहत सभी को होती है और वह जितने लोगो को प्रेम करता है उनके अतिरिक्त एक और को प्रेम करना चाहता है | प्रेम सदा दूर की वस्तुओं और व्यक्तियों से होता है जो अपनी पहुँच से बाहर होते है, दूर का विकल्प दूर होता है इसलिए जो लोग उसके आसपास होते है उन्हें प्रेम करना व्यक्ति की विवशता होती है क्योंकि मनुष्य को जीने के लिए दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है | संसार में अकेला रहना अति कठिन है सभी को अपनी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक दूसरे पर आश्रित रहना पड़ता है इसलिए प्रेम शब्द एक कड़ी है जो एक-दूसरे से संबंध स्थापित करने का कार्य करता है | प्रेम मन की शांति और प्रसन्नता के लिए किया जाता है परन्तु प्राय: मन के विचलित और उदास होने का कारण प्रेम ही होता है |
किसी से संबंध की इच्छा होने पर ही प्रेम होता है, इच्छा के साथ-साथ आजीवन निस्वार्थ लम्बा चलने वाला प्रेम मिलने की आशा भी होती है क्योंकि वचनबद्ध प्रेम की सभी को आवश्यकता है | एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से आकर्षित होने के यही तीन कारण होते है | इच्छा, आशा या आवश्यकता के बिना प्रेम होने के लिए आकर्षण नहीं होता | प्रेम एक स्वार्थ और दिखावा है यह स्वार्थ शारीरिक या मानसिक होता है, जिस प्रेम में व्यक्ति का शारीरिक या मानसिक स्वार्थ पूरा नहीं होता वह प्रेम अगले ही पल घृणा में बदल जाता है | जब व्यक्ति की आशा समाप्त हो जाती है कि अब दूसरे व्यक्ति से मानिसक या शारीरिक आवश्यकता पूरी नहीं होगी तो उसका प्रेम घृणा का रूप ले लेता है | एक समय में एक से अधिक लोगो को प्रेम करने और प्रेम पाने की इच्छा सभी में होती है परन्तु सामाजिक व्यवस्था और नियम के कारण लगभग सभी लोग अपनी प्रेमिच्छा को दबाते है | प्रेम उस ऊर्जा का नाम भी है जो जीव के रक्त (खून) में होती है, जिसके रक्त में ऊर्जा नहीं होती उसमे प्रेम भाव नहीं होते |
प्रेम के कारण :
प्राय: प्रेम धन और शारीरिक संबंध बनाने इच्छा या आवश्यकता के कारण होता है, प्रेम साकार वस्तुओं से होता है जैसे स्थान, वस्तु, व्यक्ति इत्यादि | प्रेम में मन की ऐसी स्थिति होती है जिसमे हर वह वस्तु या व्यक्ति चाहिए जिसको व्यक्ति पाने में असमर्थ है, एक बार वह व्यक्ति या वस्तु मिलने पर प्रसन्नता के कारण प्रेम अधिक बढ़ भी जाता है और यह निश्चित होने पर कि अब यह व्यक्ति या वस्तु उसी की है वह केवल भोग का साधान होती है, एक समय सीमा के बाद दिलचस्पी समाप्त होने लगती है | एक दूसरे में दिलचस्पी समाप्त होने पर बहाने की तलाश की जाती है, जो बातें प्रेम होने की पुष्टि तक अनमोल या अति प्रिय लगती है वही बातें दिलचस्पी समाप्त होने पर एक दूसरे से अलग होने का कार्य करती है | प्रतिदिन नया, सबसे अधिक और अलग पाने की इच्छा व्यक्ति को दूसरों से प्रेम करने के लिए विवश करती है |
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दो लोगों द्वारा एक सामान इच्छा, सुविधा और परिस्थिति के कारण प्रेम होता है | दोनों ओर से बात करने या बार बार मिलने का अवसर और सुविधा होने पर प्रेम होना स्वाभाविक है | मिलने जुलने से एक दूसरे में दिलचस्पी बनती है जो आगे चलकर प्रेम कहलाती है | प्रेमी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना व्यक्ति का लक्ष्य होता है | अपने प्रिय के सुबह उठने से लेकर रात को सोने और सपनो की जानकारी में भी व्यक्ति की उत्सुकता और रुचि होती है | दोनों ओर से अपने व्यवहार, रहन–सहन का दिखावा किया जाता है कि उन्हें किसी भी प्रकार की कोई भी समस्या नहीं है क्योंकि उन्हें ऐसे प्रेम से प्रेम है जिसकी उन्हें अब तक तलाश थी | प्रेम में एक-दूसरे को दिखावा किया जाता है कि उनके आसपास के लोगो से उन्हें वैसा प्रेम अब तक नहीं मिला जैसा उस प्रिय से मिल रहा है, अभी तक के मिले प्रेम या सम्मान का कोई महत्त्व नहीं होता |
दोनों व्यक्ति यह साबित करने का प्रयास करते है कि उसका प्रेम अधिक गहरा और निस्वार्थ है जबकि दोनों की इच्छा और आवश्यकता एक सामान होती है | कभी-कभी तो अपने प्रेम को अधिक दर्शाने के लिए झूठ और दिखावे का भी प्रयोग होता है, इसमें ऐसे शब्द और वाक्यों का प्रयोग भी होता है जिनसे असल ज़िन्दगी का कोई लेना देना नहीं होता, मनघडंत बाते और कहानियाँ बेझिझक कही जाती है, यह जानते हुए भी कि इनमे से आधे से अधिक बातें झूठ और निराधार है ऐसी बाते कहना और सुनना दोनों को अच्छा लगता है | प्रेम का जन्म विचार से होता है, देखने, बोलने और सुनने से यह बड़ा होता है इसमें शक्ति आती है, छूने से यह वृद्ध होता है और इसका अंत होता है | प्रेम(इच्छा, आशा, आवश्यकता) तब तक ही होती है जब तक प्रेमी को साकार रूप में ना पाया हो |
प्रेम का एक प्रकार मानसिक प्रेम भी है, मानसिक प्रेम दूरी या परिस्थिति के कारण होती है इसमें इच्छा और आवश्यकता से अधिक आशा होती है | दूसरे व्यक्ति से ऐसे वचन की आशा होती है जो अभी तक किसी ने ना किया हो और व्यक्ति में स्वयं भी ऐसा ही वचनबद्ध होने की इच्छा होती है, ऐसे प्रेम में जोखिम या जिम्मेदारी नहीं होती इसलिए अधिकतर लोग मानसिक प्रेम करना ही पसंद करते है | हालांकि प्रेम कभी भी छुपता नहीं है चेहरे के हावभाव से अन्य लोगो को यह ज्ञात हो जाता है कि व्यक्ति किसी से प्रेम करता है | जो लोग अधिक भावुक होते है उन्हें प्रेम की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि उनमे असुरक्षा और अकेलेपन के विचार अधिक होते है ऐसे लोग बहुत शीघ्र प्रेम करने लगते है और आशा करने लगते है कि दूसरा व्यक्ति भी उनसे बहुत प्रेम करता है |
कभी कभी दो लोगों में प्रेम की अवधि लम्बी चलती है जिसका मुख्य कारण बातचीत में एक दूसरे को दिए गए वचन है | जैसा प्रेमी मिला है वैसा कोई और व्यक्ति ना मिलना भी प्रेम की अवधि को बढाता है, एक प्रेमी की आदत होना और दूसरे व्यक्ति से विचार या अवसर का मेला ना खाना, किसी अन्य से प्रेम ना होने का कारण बनता है | व्यक्ति के पास दूसरा विकल्प हो और स्वयं की मान्यता और समाज का दबाव नहीं हो तब वह पुराने प्रेमीसाथी को छोड़कर नए के साथ होना पसंद करता है | पुरुष पर समाज का दबाव कम होता है इसलिए नए संबंध बनाने की पहल पुरुष ही करते है स्त्री पर संस्कार और परिवार का दबाव होने के कारण चाहते हुए भी वह अपने मन की बात नहीं कह पाती | ऐसा नहीं कि स्त्री में नए प्रेम पाने की इच्छा नहीं होती परन्तु एक बार फिर से गलत प्रेमी मिलने का डर उसे ऐसा करने से रोकता है |
कुछेक लोग किसी एक से इतने अधिक आकर्षित हो जाते है कि केवल उसी को पाना चाहते है, किसी अन्य व्यक्ति से वैसा प्रेम करना उनके लिए असंभव होता है इसलिए वह आजीवन अविवाहित भी रहते है | कभी-कभी तो उस व्यक्ति को भी नहीं पता होता जिसके लिए दूसरा अविवाहित रहता है इसे एकतरफा प्रेम (एक और से) कहते है | इच्छित प्रेमी से विवाह नहीं होने पर भी व्यक्ति अविवाहित रहते है ऐसे लोग प्रेम करने और विवाह नहीं करने ले लिए बाद में पछताते है | यूं तो ऐसा भी कहा जाता है कि प्रत्येक शादीशुदा आदमी को पछतावा होता है कि उसका विवाह उसके जीवन साथी से क्यों हुआ किसी और से क्यों नहीं, इसके पीछे भी किसी एक और से प्रेम पाने की इच्छा होती है |
एकदूसरे के प्रति वचनबद्ध होने के कारण प्रेम का अंत प्रेमविवाह है परन्तु अधिकतर प्रेमविवाह सफल नहीं होते इसका मुख्य कारण यह है कि पुरुष स्त्री को गर्दन से नीचे से प्रेम करता है और स्त्री पुरुष को गर्दन के उपरी भाग से प्रेम करती है यानी पुरुष स्त्री के रूप रंग से आकर्षित होता है और स्त्री पुरुष के विवेक और ज्ञान से आकर्षित होकर उसे प्रेम करती है | विवाह से पहले खुली आँखों से देखे गए सपने पूरे नहीं होने पर प्रेम की बलि चढ़ती है | विवाह के बाद शारीरिक संबंध और धन के कारण प्रेम किताबों में लिखी बातों जैसा लगने लगता है | विवाह से पहले की गयी बाते और साथ देखे सपने साकार नहीं हो पाते, कुछेक लोग प्रेम को प्रेम की तरह ही लेते है परन्तु एक समय के बाद नया करने और नया पाने की इच्छा दोनों में से एक को बेवफा बना देती है | प्रेम विवाह करने वाले अधिकतर लोगों को ना चाहते हुए भी साथ रहना पड़ता है क्योंकि परिवार वाले उन्हें कहेंगे कि विवाह का फैसला उनका अपना है उन्होंने परिवार वालों की बात नहीं मानी इसलिए अब जैसा भी है भुगतो, ऐसे प्रेम में इच्छा से अधिक विवशता अधिक होती है |
समाज, संस्कार और विचारधारा में बंधे हुए लोग ना चाहते हुए भी एक दूसरे के साथ जीवन बिताते है | सामाजिक तौर पर उन्हें ऐसा दिखना पड़ता है जैसे उनसे अधिक प्रेम कही हो ही नहीं सकता | दूसरों को प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले प्राय: आवश्यकता के अधीन होकर परिवार के अधिकतर लोग जो कि एक-दूसरे को पसंद नहीं करते फिर भी साथ में रहते है |
शारीरिक आवश्यकता की पूर्ती के लिए स्त्रियों को वचन देना पुरुषों के स्वभाव में है जिस पर अधिकतर पुरुष खरा नहीं उतरते और जो अपने वचन को पूरा करते है उनमे से अधिकतर पुरुषों को लडाई-झगडे या अपयश का डर होता है | आज की नारी भी अब पुरुष के स्वभाव को जान गयी है इसलिए वह समय समय पर इसका लाभ भी उठाती है | पुरुष अपनी समझ और मेहनत से कमाया धन खर्च करके अपना प्रेम स्त्री को दर्शाता है जबकि स्त्री अपना शरीर पुरुष को सौंप कर अपने प्रेम को पुरुष से अधिक दर्शाती है | प्रेम के लिए दिखावा करने की आवश्यकता नहीं होती, प्रेम में एक-दूसरे को अपना समय देने की आवश्यकता होती है | धन या शारीरिक संबंध केवल इस बात की पुष्टि के लिए होते है कि “मुझे तुमसे प्रेम है” यानी मैं अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार तुम्हारे साथ समय बिताना चाहता/चाहती हूँ |
प्रेम जब व्यक्ति के मस्तिष्क तक हावी हो जाता है तब वह परिवार, मर्यादा, संस्कार, शिक्षा, समाज इत्यादि को भूल कर ऐसे वचन बोलता है जिन पर चलना कठिन ही नहीं असंभव भी होता है जिसके कारण उसे जीवन में अपयश और हानि का सामना भी करना पड़ता है | जब ऐसा प्रेम दोनों और से हावी हो जाता है तब व्यक्ति के विचार और विवेक किसी भी हद तक जा सकते है | समाज में ऐसे बहुत सारे आश्चर्यजनक प्रेम सुनने और अनुभव करने को मिलते है, किसी रिश्तेदार, मित्र, पडोसी से शारीरिक संबंध होना ऐसे ही प्रेम का एक रूप है | शारीरिक आवश्यकता अधिक होने पर भी प्रेम को दर्शाया जाता है इसमें वाक्यों और शब्दों को अधिक महत्त्व दिया जाता है |
माता पिता
माता-पिता के प्रेम को संसार में निस्वार्थ प्रेम कहा गया है सभी माता पिता अपनी बच्चों के लिए हर संभव कार्य करते है | इसी प्रेम के कारण कभी तो वह अपने बच्चों के लिए ऋण भी लेते है तो कभी अपनी इच्छाओं को मार कर बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करते है | माता-पिता बनने से लेकर बच्चों के लिए सभी कुछ करने के पीछे तक उनका स्वयं का स्वार्थ होता है | माता-पिता बनने की इच्छा के साथ अपने बुढापे में सहारा होने की आशा और आवश्यकता भी होती है | संतान उत्पत्ति द्वारा सभी लोग सामाजिक तौर पर तक भी दर्शाते है कि उनमे किसी भी प्रकार की शारीरिक कमजोरी अथवा कमी नहीं है | माता-पिता उस बच्चे से अधिक प्रेम करते है जिसके साथ उनकी विचारधारा मिलती हो, जो उनकी बातों से सहमत होता हो, माता पिता के साथ ऐसे बच्चो का प्रेम नहीं होता जो अपनी इच्छा से कार्य करता है या माता पिता के कार्यों और वचनों से सहमत नहीं होता | हालांकि कुछ ना कर पाने की स्थिति में बच्चे और माता-पिता एक-दूसरे से प्रेम होने का दिखावा भी करते है ऐसा करने के पीछे भविष्य में एक-दूसरे पर आशा होती है | अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संतान को माता-पिता पर आश्रित रहना पड़ता है इसलिए संतान माता-पिता से प्रेम करती है, माता-पिता की संपत्ति और समाज में लायक संतान दिखने के स्वार्थ से संतान अपने माता-पिता से प्रेम करती है |
भाई बहन एवं संबंधी
भाई-बहन के प्रेम में आवश्यकता होने पर एक-दूसरे से धन का सहयोग की आशा होती है | आपसी विचारधारा ना मिलने पर भी एक ही माता-पिता की संतान होने के कारण एक दूसरे से प्रेम दर्शाना विवशता होती है, इसमें समय-समय पर उपहार का लेन-देन प्रेम दर्शाने में सहायक होता है | मित्र-रिश्तेदारों के प्रेम में सामाजिक और आर्थिक सहायता वाला स्वार्थ है | यश पाने की इच्छा भी दिखावे वाले प्रेम को जन्म देता है | संसार में कुछ भी स्वार्थहीन नहीं है सभी प्रकार के प्रेम अथवा चिंता/ सहायता में कोई न कोई स्वार्थ अवश्य है |
गुरु शिष्य
गुरु-शिष्य का संबंध संसार के सभी संबंधों से उत्तम कहा जाता है क्योंकि इसमें सांसारिक लेन-देन नहीं होता इसे धर्म के साथ जोड़ा जाता है और यह भी कहा जाता है कि बिना गुरु के व्यक्ति की गति नहीं होती इसलिए गुरु होना आवश्यक है | अपने ज्ञान को शिष्यों तक पहुंचाकर पुण्यपूँजी जमा करने में गुरु का निजी स्वार्थ है, साथ-साथ यश और धन कमाना भी गुरु स्वार्थ है | सांसारिक समस्याओं और परिस्थितियों का सामना करने के लिए मानसिक सुरक्षा के भाव वाला स्वार्थ सभी शिष्यों में होता है, आत्मविश्वास और ज्ञान की कमी के कारण पापकर्म के विपरीत फल का भय और मोक्ष की लालसा भी शिष्य को स्वार्थी बनाता है,यह प्रेम स्वार्थ के साथ-साथ भय के कारण होता है|
धर्म में प्रेम का बहुत महत्त्व है, भक्त और भगवान के प्रेम और उसकी महिमा के बारे में हम सभी जानते है परन्तु यह प्रेम भी स्वार्थ से होता है इस प्रेम में स्वार्थ के साथ साथ स्वयं को धोखा देना भी शामिल है | जाने-अनजाने किए पाप से बचने के लिए देवी देवताओं से प्रेम करना स्वार्थ की चरम सीमा है, स्वयं को धोखा देने के लिए अधिक पूजा-पाठ या दान-पुण्य किया जाता है | सभी यह जानते है कि सभी को अपने–अपने कर्मों का फल अवश्य भुगतना होता है फिर भय के कारण झूठे प्रेम से कर्मों के फल से बचाव कैसे होगा यह कोई नहीं समझना चाहता | धर्म की आड़ में दिखने और दिखाने वाले प्रेम में ना दिखने वाला स्वार्थ है |
धन और यश पाने के स्वार्थ में एक देवी या देवता की उपासना छोड़ कर दूसरे की उपासना करना धार्मिक होकर भी महा अधर्मी होने का प्रमाण है | धर्म में आत्मा को नारी और परमात्मा को पुरुष भी कहा गया है यह तो ऐसा हुआ मानो एक स्त्री धन और यश के स्वार्थ हेतू अपने पति को छोड़ कर दूसरा विवाह कर लेती है क्या इसे प्रेम कहते है ? घंटों पूजापाठ करने वाले लोग यह समझने लगते है कि उनके इष्टदेव उनसे अति प्रसन्न है इसलिए वह जो भी बोलते या करते है वह सही ही होता है यह प्रेम नहीं अपने आप को धोखा देना है |
प्रेम में असफल कुछ लोग देवताओं को अपना पति मानने लगते है यह प्रेम नहीं महापाप है देवी देवता हजारों- लाखों साल पहले साकार रूप में थे, उनके दादा पडदादा से पहले कितनी ही पीढियां निकल चुकी है, पूर्वजों को पति मानकर अपने आप को धन्य समझना किस प्रकार का प्रेम है ? स्त्रियाँ देवताओं को पति कहती है इसी प्रकार यदि पुरुष किसी देवी को पत्नी कहने लगे तो क्या वह प्रेम भी सही है ? दरअसल स्त्रियों के ऐसे प्रेम में मानसिक स्वार्थ है जिन्हें अपने जीवनसाथी से सहयोग और आदर नहीं मिलता और उन्हें दूसरों पर विश्वास नहीं होता तो वह अपनी मानसिक तृप्ति के लिए देवताओं को पति कहना अथवा मानना आरंभ कर देती है | धर्म के अनुसार देखा जाए तो ऐसा करने से देवी देवता प्रसन्न नहीं होते उल्टा रुष्ट होते है परन्तु मनुष्य प्रेम अपनी सुविधा और स्वार्थ के लिए करता है इसलिए वह सही-गलत को समझना ही नहीं चाहता |
अनेकों लोग देवी-देवता को स्वप्न या साकार रूप में देखने के लिए उनसे प्रेम करते है, हर भक्त की यह इच्छा होती है कि वह अपने ईष्टदेव को देखे | जब तक उसे इष्टदेव के दर्शन नहीं होते तब तक वह उसके प्रेम में तड़पता है, अधिक से अधिक प्रयत्न करता है कि किसी भी यत्न से देव प्रसन्न हो जाये और मुझे साकार दर्शन हो | दर्शन होने पर अति प्रसन्नता होती है परन्तु साथ ही अब वह अपने इष्टदेव का प्रयोग अपनी सांसारिक सुख सुविधाओं के लिए करने का विचार करने लगता है कि अब इस कृपा का प्रयोग कैसे किया जाये | प्रेम को भूलकर सामाजिक यश पाने के स्वार्थ से लोगों पर अपनी कृपा करने का दिखावा करके भोले-भाले लोगो के ईश्वर के प्रति प्रेम का शोषण किया जाता है |
प्रेम सदा साकार से होता है, बिना देखे, सुने या सोचे प्रेम नहीं होता | प्रेम करने के लिए किसी की साकार छवि होना अति आवश्यक है, मस्तिष्क में छवि बनते ही प्रेम होने लगता है यानी मिलने, देखने और छूने की इच्छा होने लगती है | निराकार से कभी प्रेम नहीं होता क्योंकि निराकार स्वयं भी किसी से प्रेम नहीं करते | प्रेम-घृणा वाले विचार जीव में है निराकार स्वयं सांसारिक विकारों से मुक्त है | निराकार स्थिर है ! मनुष्य की तरह इधर उधर भटकना निराकार के स्वभाव में नहीं है | प्रेम को छोड़कर ही आध्यात्म में सफलता मिल सकती है क्योंकि जो साकार नहीं है वह किसी साकार वस्तु या व्यक्ति में नहीं मिल सकता |
आध्यात्मिक प्रेम सांसारिक प्रेम से भिन्न है, इसमें भिन्न प्रकार का स्वार्थ होता है, इस प्रेम में मानसिक, शारीरिक या धन की इच्छा या आवश्यकता नहीं होती | इसमें अपने प्रेमी/प्रेमिका के लिए निस्वार्थ एक दूसरे को अधिक से अधिक ज्ञान पहुंचाने का प्रयत्न करते है जिससे उसका मोक्षमार्ग सरल हो सके | एक की अध्यात्मिक सफलता दूसरे को ऐसी आत्मिक प्रसन्नता देती है जिसको शब्दों में नहीं बताया जा सकता | इसमें इच्छा, आकर्षण, आवश्यकता, विवशता नहीं होते, यदि कोई अध्यात्मिक मिल गया तो उसे सहयोग कर दिया नहीं मिला तो किसी के मिलने की इच्छा किए बिना अपनी जीवन यात्रा पूरी करनी होती है | ऐसा प्रेम लाखो-करोडो में से एक व्यक्ति में होता है और ऐसे व्यक्तिओं ने अपना जीवन निराकार को समर्पित किया होता है |
प्रेमी की पहचान कैसे करे :
जिस व्यक्ति से आप अपने मन की बात निसंकोच कह सकते हो और वह बात उसके पास गोपनीय रहती है, एक अच्छा प्रेमी होता है | प्रेमी या प्रेमिका को जानने के लिए अधिक से अधिक मिले और बात करे, मिलने पर ऐसे बात करे जैसे आप उसे पहले से ही जानते है | प्रेमी/प्रेमिका को इतनी सुविधा दीजिए कि वह अपने मन की हर बात खुल के बताए | एक मिलन में यदि दो घंटे से अधिक बात होती है तो तीसरे घंटे में उसके मुहं से ऐसी बाते निकलने लगती है जो वह आपके लिए सोचता है | इन्ही बातों से प्रेमी/ प्रेमिका के प्रेम की असलियत सामने आती है कि उसका प्रेम धन के लिए है या शारीरिक संबंध बनाने के लिए है | सभी की अपनी अपनी आवश्यकता होती है व्यक्ति की तीन प्रकार की आवश्यकताएं होती है यदि प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे की आवश्यकता को पहचान कर उस आवश्यकता को पूरा कर सकें तो प्रेम की अवधि लम्बी हो सकती है |
पहली आवश्यकता मानसिक होती है, व्यक्ति अपने प्रेमी/प्रेमिका में अच्छा श्रोता, समझदार और आवश्यकता पड़ने पर सही राह दिखाने वाला ढूंढ़ता है, समय-समय पर एक-दूसरे को प्रोसाहित करना, समझाना, तारीफ करना, सभी प्रकार की बाते निसंकोच करना भी मानसिक आवश्यकता का हिस्सा है | दूसरी आवश्यकता शारीरिक होती है, व्यक्ति अपने प्रेमी/प्रेमिका को मिलना और छूना चाहता है, समय-समय पर एक दूसरे के कार्य करना, घूमना फिरना, गले लगाना, चूमना और शारीरिक संबंध बनाना भी शारीरिक आवश्यकता का हिस्सा है | तीसरी आवश्यकता धन होती है, समय-समय पर एक दूसरे पर धन व्यय करना, उपहार देना, आवश्यकता के समय आर्थिक सहायता करना भी धन की आवश्यकता का ही हिस्सा है |
प्रेमी-प्रेमिका दोनों की आवश्यकता एक जैसी होने पर उनमे कभी भी प्रेम नहीं होता, एक की आवश्यकता मानसिक होने पर दूसरे की शारीरिक या धन की है, एक की शारीरिक और दूसरे की मानसिक या धन की है या एक की धन की और दूसरे की मानसिक या शारीरिक है और दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकता पूरी करने में संकोच नहीं है तो उनमे प्रेम हो जाता है | यह स्वार्थयुक्त सांसारिक प्रेम है |
प्रेम में हानि :
प्रेम के कारण व्यक्ति समय, शक्ति और धन की हानि करता है | प्रेम होने पर व्यक्ति अपना अधिक से अधिक समय प्रेम में लिप्त रहने का प्रयास करता है अपनी सारी शारीरिक और मानसिक ऊर्जा प्रेम के बारे में सोचने और प्रेम करने में लगा देता है, अपने धन को प्रसन्न करने के लिए धन खर्च करने में संकोच नहीं करता | प्रेम मर्यादा में कभी नहीं चलने देता जिसके कारण अपयश (बेइज्जती) का सामना करना पड़ता है |
प्रेम आजकल :
विज्ञान ने इतना विकास कर लिया है कि प्रेम भी बहुत विकास हो गया है, प्रेम व्यक्त करने और करने के तरीके पहले के समय के मुकाबले आज बहुत सरल और तीव्र हो गए है | पहले के समय में प्रेमी या प्रेमिका एक- दूसरे का चेहरा देखने को तरसते थे अब घर बैठे इन्टरनेट और मोबाइल में तस्वीर-ए-यार मिल जाती है | पहले एक प्रेमी मिलना कठिन होता था अब एक साथ कई प्रेमी मिलते है जिस कारण मन अधिक भ्रमित हो गया है क्योंकि यह ही समझ में नहीं आता कि इतना अधिक प्रेम दिखने वाला व्यक्ति आखिर चाहता क्या है ? विज्ञान के इस विकास के कारण कुवारों के साथ-साथ शादीशुदा लोगो को भी प्रेम करने के अवसर मिल रहे हैं, इसके कारण परिवारों में कलह-कलेश और तलाक की संख्या भी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है | इस नए तरीके के इन्टरनेटप्रेम में इतना आनंद है कि चाहते हुए भी यह नहीं छोड़ा जाता | इस प्रेम में एक से एक विकल्प है, व्यक्ति जैसा प्रेमी/प्रेमिका चाहता है वैसा मिल जाता है |
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ने प्रेम की प्रेम की परिभाषा ही बदल दी है | जिन्हें परिवार में समय और सम्मान कम मिलता है उनके लिए एक साथ कई लोग प्रेम में डूबे दिखते है, ऐसे लोग स्वयं को किसी फिल्म स्टार से कम नहीं समझते जिनके एक चित्र (फोटो) पर सैंकड़ो लाइक्स करते है | समय व्यतीत करने के लिए मनचले लोगों द्वारा लिखी बातों में उनको प्रेम ही प्रेम दिखता है जिसके कारण वह वास्तविक प्रेम से अलग प्रेम का अनुभव करते है | चैटिंग में ऐसी बाते सुनने को मिलती है जिनकी कल्पना केवल अपने मन में करते है, जीवनसाथी के साथ शारीरिक संबंध बनाते समय जो उत्तेजना का अनुभव नहीं हो पाता वह बातों में हो जाता है | इन्टरनेट पर मिले लोग एक दूसरे से पिछले जन्मों का नाता जोड़कर भावुक होने लगते है, चैटिंग में लोग स्वयं को प्यार के सागर में डूबा पाते है, ऐसे प्रेम में महिलायें अधिक भावुक हो जाती है, बहुत सारी महिलायें अपनी निजी फोटो भी पुरुष प्रेमियों को भेज देती है जिसका अंजाम भी हानिकारक होता है |
हैलो से शुरू हुई बातचीत जब सभी मर्यादाओं को पार कर जाती है तब दोनों और से अति प्रसन्नता अनुभव की जाती है | हर प्रकार की बातें करने के बाद जब सब बाते समाप्त हो जाती है तो प्रेमी की दिलचस्पी समाप्त होने लगती है, प्रेमिका को समय कम देना आरंभ करता है और उसकी बातो में कमियाँ निकलना प्रारम्भ करता है | यह सब कुछ बहुत तेजी से होता है, यह बात प्रेमिका के ह्रदय में लगती है क्योंकि उसने जिस पुरुष पर विश्वास किया वह उसे समय और सम्मान नहीं देता | धीरे-धीरे इन्टरनेटप्रेम घृणा में बदलता है फिर बात मित्रों और परिवार तक पहुँचती है जिसके कारण दोनों का अपयश होता है, दोनों एक-दूसरे को दोषी ठहराते है परन्तु कोई लाभ नहीं होता | मन से दुखी महिला उस प्रेम को याद करती है जो उसमे अपने इन्टरनेट प्रेमी के साथ अनुभव किया होता है तभी कोई और पुरुष से बातचीत होनी आरम्भ होती है और फिर से वही सारी बाते, वायदे, कहानियाँ होती है परन्तु इस बार महिला समझ चुकी होती है कि अब पुरुष को क्या चाहिए |
जिन लोगों को केवल बातें करके इन्टरनेटप्रेम का अनुभव करना होता है वो लोग करने लग जाते है, जिनको वास्तविक प्रेम की इच्छा होती है वह लोग बातों से आगे बढकर मिलने में रुचि रखते है | इन्टरनेट प्रेम मिलने के बाद लम्बा चलने की सम्भावना बहुत ही कम होती है, हालाँकि आजकल तो इन्टरनेट पर मिले लोगो के आपस में विवाह भी होते है | इन्टरनेटप्रेम मध्यम वर्ग में आम बात है मित्र बनाने के पीछे का स्वार्थ सभी जानते है इसलिए सभी इस प्रेम वह संतुष्टि और प्रसन्नता की खोज में है जो उन्हें निजी जीवन में अपनी परिस्थिति के कारण नहीं मिलते |
प्रेम :
प्रेम होने का कोई भी कारण हो सकता है जैसे सौंदर्य, बुद्धि, धन, रहन-सहन, व्यवहार, कार्य, स्थान, इत्यादि | प्रेम के पीछे एक निजी स्वार्थ अवश्य होता है जब यह स्वार्थ दोनों ओर से होता है तब यह प्रेम घनिष्ठ होता है और यह लम्बी अवधि तक चलता है | सभी के मन में अपने प्रेमी/प्रेमिका की एक छवि होती है, सभी को ऐसा एक प्रेमी या प्रेमिका चाहिए जो किसी और के पास नहीं हो जो सबसे अलग हो और जो अभी तक उसके पास नहीं है | मन की ऐसी आशाओं को पूरा करने के लिए एक प्रेमी की आवश्यकता सभी को है जो अभी तक पूरी नहीं हो पाई है |
याद रखने योग्य बातें :
- प्रेम का अर्थ है किसी को अपना बनाओ या उसके बन जाओ |
- प्रेम जीवन में बहुत कुछ है परन्तु सब कुछ नहीं है |
- प्रेम में प्रेमी/प्रेमिका की कमियाँ नहीं दिखती |
- प्रेम को लम्बी अवधि तक चलाना चाहते हो तो अपने प्रेमी/प्रेमिका को अपने बारे में सब कुछ ना बताओ |
- प्रेम किए बिना प्रेम नहीं मिलता, और बिना प्रेम मिले आप किसी से प्रेम नहीं करते |
- प्रेम केवल उसी व्यक्ति से होता है जिससे आशा या आवश्यकता होती है |
- प्रेम में दोनों लोगो का स्वार्थ होता है, परन्तु पहल करने वाले का स्वार्थ अधिक होता है |
- प्रेम में दूर होना प्रेमी की उत्सुकता को बढाता है, अधिक समीपता दिलचस्पी घटाता है |
- प्रेम में नीचा नहीं दिखाया जाता, प्रेमी-प्रेमिका का एक-दूसरे के लिए सम्मान और सहयोग बराबर होता है |
- प्रेमी/प्रेमिका का अचानक बदला व्यवहार इस बात को दर्शाता है कि वर्तमान परिस्थिति के अनुसार पहले जैसी सामान सुविधा या अवसर नहीं मिल सकता | यह एक-दूसरे आशा के समाप्त होने का संकेत भी है |
- एक तरफ़ा प्रेम के परिणाम हानिकारक होते है, किसी के लिए ह्रदय में उपजे प्रेम को अवश्य कहो |
- किसी के विचार, सुन्दरता या धन से आकर्षित होने की जल्दी ना करे, यदि कोई आपको आकर्षित करने का प्रत्न करता है तो इसका अर्थ है वह आपसे आकर्षित हो चुका है |
- प्रेम जितना, जैसे और जिससे मिले पाने की चेष्टा करो, यदि कोई आपसे प्रेम चाहता है तो अपनी सुविधा के अनुसार अवश्य प्रेम करो |
- प्रेम आपकी मानसिक या पारिवारिक समस्या का कारण नहीं बनना चाहिए |
- प्रेमी/प्रेमिका को पाने या छोड़ने के बहाने ना बनाओ, परिस्थिति और आवश्यकता को समझो |
- प्रेम नहीं करो दूसरे की चिंता करो, प्रेम में केवल चाहत है |
- जीवनसाथी को इतना समय और प्रेम दो कि उसे किसी और प्रेम की तलाश ना रहे |
- बेवफा कोई नहीं होता उनकी आशाएं और आवश्यकताएं अधिक होती है |
- प्रेम में वह व्यक्ति बेवफा नहीं है जिसे अभी तक विकल्प या अवसर नहीं मिला |
- प्रेम धर्म के लिए बना है, आध्यात्म में प्रेम का कोई स्थान नहीं है |
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श्री बतरा जी के बारे में :
श्री विजय बतरा कर्मज्ञाता और आध्यात्मज्ञाता होने के साथ–साथ आध्यात्मिक लेखक और आध्यात्मिक शिक्षक भी है | श्री बतरा जी अनेकों वर्षों से आध्यात्म के प्रचार और अंधविश्वास की समाप्ति के उद्देश्य से इन्टरनेट और व्यक्तिगत रूप से मिलकर भारत और विदेशों में हजारों समस्याग्रसित और आध्यात्मिक खोज करने वाले लोगों का मार्गदर्शन कर चुके है | इनके आध्यात्मिक विचार, लेख, पुस्तकें व्यक्ति को भय एवं भ्रम से मुक्त करके सकारात्मक जीवन जीने की कला सिखाती है | इनका जीवन आध्यात्म को समर्पित है इसी कारण इन्होने उन प्रश्नों के तार्किक उत्तर लिखे है जिन प्रश्नों का उत्तर अभी तक रहस्य ही बने हुए थे | दूसरों की सहायता करने में तत्पर रहने वाले श्री बतरा जी ने सर्व एंड केयर चैरिटेबल सोसाइटी (SERVE & CARE CHARITABLE SOCIETY) संस्था बनाई जिसके द्वारा हर वर्ष अनेकों लोगों की सहायता की जाती है | आध्यात्मिक शिक्षा के प्रचार के लिए इन्होने COLLEGE OF SPIRITUAL EDUCATION प्रारंभ किया जिसका लाभ आध्यात्मिक रुचि रखने वाले लोगों को हो रहा है | धर्म द्वारा फ़ैल रहे भ्रम और भय को समाप्त करने के लिए श्री बतरा जी ने शून्यपंथ की भी स्थापना की है जो विश्व का एकमात्र पंथ है जिसमे केवल शून्य/ईश्वर और आध्यात्म का प्रचार है इसके अतिरिक्त किसी धर्म, व्यक्ति, ग्रंथ इत्यादि का प्रचार नहीं है | श्री बतरा जी नकारात्मक ऊर्जा से ग्रसित लोगों को अपने विशेष परामर्श और आध्यात्मिक उपचार से मानसिक आरोग्यता प्रदान कर रहे है, आप भी इसका लाभ श्री विजय बतरा KARMALOGIST से मिलकर उठा सकते है |
Vijay Batra Karmalogist
Spiritual Coach and Napoo Paranormal Expert
Paschim Vihar, New Delhi – 110063, INDIA